५ मार्च जनपद जालौन के प्रसिद्ध कवि स्व० श्री कृष्ण दयाल सक्सेना 'निस्पृह
' जी का निर्वाण दिवस है ,जो अपने मूल्यों के प्रति समर्पित एक आदर्श व्यक्तित्व के रूप में जाने जाते थे। वे हिन्दी ,अंग्रेजी संस्कृत व उर्दू
भाषों में काव्य रचना करते थे । प्रस्तुत है उनकी १९६ ८ में रचित एक रचना-
........................न संघर्ष होते ,न उपलब्धि होती ...........................
न संघर्ष होते , न उपलब्धि होती पराजय -विजय न फ़िर प्रश्न होता ।
न आकाश होते , प्रगतिशील मानव , न फ़िर चंद्र पाने की आशा सँजोता ;
न विज्ञान अपने प्रयोगों की निधि को , विफल्तांक में इस तरह न खोता ;
अमानव न होते ,न अवतार होते, न जो कंस आता , न फ़िर कृष्ण होता ;
न संघर्ष होते..................................................................................( १ )
न भगवान होते,न फ़िर भक्त होते,न जो साध्य होता न साधक ही होते;
न जो देवी होती ,उपासक न होते,न आराध्य होता ,न आराधक होते;
न जो इष्ट होता ,न फ़िर सिद्धि होती,सफल या विफल न फ़िर प्रश्न होता;
न संघर्ष होते ................................................................................ ( २)
समस्या न होती ,न हल के लिए भी ,किसी की भी साधना ही न होती;
न संकल्प होता,न प्रण -पूर्ति की ही ,किसी को कभी भावना ही न होती;
प्रतिष्ठा न होती ,न व्रत पालने के, लिए ही कोई नर संलग्न होता ;
न संघर्ष होते....................................................................................(३)
न सत्कर्म होते ,न सत्संग होता ,न जो संत होते, न होती भलाई ;
न फ़िर विश्व के गर्भ से ही कभी भी ,युगों से पनपती, न खोती बुराई;
न सदगुण जो होते,न ध्रुव-सत्य होता,नअन्याय का पथ कभी भग्न होता;
न संघर्ष होते ..................................................................................( ४ )
निराशा न होती .सु-आशा का सम्बल , न जीवन में किंचिद कभी मूल्य पाता ;
न अस्तित्व होता कि जीवन में सुख को ,न कोई कभी क्लेश दुःख भूल पाता .;
'विषम' और 'सम' का न जोड़ा जो होता, न उत्साह होता ,विफल यत्न होता .
न संघर्ष होते ...................................................................... ............(.५ )
न जो धर्म होता ,प्रभावक कभी भी,प्रयासों से अपने महामानव बनता ;
न दो चार पग भी उसे साथ देते ,कि ' गंतव्य' से दूर हो भीरु, थकता ;
न सक्षम ही होता,सुमानस किसी का, न कर्त्तव्य की भावना -मग्न होता
न संघर्ष होते........................................................ .............................(.६ )
न इंगित जो होता ,सहारा न होता,न चलता कभी भी सफल सृष्टि का क्रम ;
इशारा न होता न अम्बर-अवनि युग्म सहयोग करते ,की रहता क्षितिज-भ्रम ;
सुनिर्मल, सबल ने सँभाला न होता , भले उच्चतम हो , महा निम्न होता .
न संघर्ष होते……………....................................................................(७)
न सौजन्य होता ,न दुर्जन सुधरते , न साफल्य होता, विफल-जन संभलते ;
न व्यक्तित्व होता ,न नर-श्रेष्ठ होते ,अडिग साधना से ,न भ्रम को बदलते ;
न सौन्दर्य होता, न गरिमा ही दिखती ,अशोभा ही होती ,सभी नग्न होता ;
न संघर्ष होते ........................................................................................(८)
........................न संघर्ष होते ,न उपलब्धि होती ...........................
न संघर्ष होते , न उपलब्धि होती पराजय -विजय न फ़िर प्रश्न होता ।
न आकाश होते , प्रगतिशील मानव , न फ़िर चंद्र पाने की आशा सँजोता ;
न विज्ञान अपने प्रयोगों की निधि को , विफल्तांक में इस तरह न खोता ;
अमानव न होते ,न अवतार होते, न जो कंस आता , न फ़िर कृष्ण होता ;
न संघर्ष होते..................................................................................( १ )
न भगवान होते,न फ़िर भक्त होते,न जो साध्य होता न साधक ही होते;
न जो देवी होती ,उपासक न होते,न आराध्य होता ,न आराधक होते;
न जो इष्ट होता ,न फ़िर सिद्धि होती,सफल या विफल न फ़िर प्रश्न होता;
न संघर्ष होते ................................................................................ ( २)
समस्या न होती ,न हल के लिए भी ,किसी की भी साधना ही न होती;
न संकल्प होता,न प्रण -पूर्ति की ही ,किसी को कभी भावना ही न होती;
प्रतिष्ठा न होती ,न व्रत पालने के, लिए ही कोई नर संलग्न होता ;
न संघर्ष होते....................................................................................(३)
न सत्कर्म होते ,न सत्संग होता ,न जो संत होते, न होती भलाई ;
न फ़िर विश्व के गर्भ से ही कभी भी ,युगों से पनपती, न खोती बुराई;
न सदगुण जो होते,न ध्रुव-सत्य होता,नअन्याय का पथ कभी भग्न होता;
न संघर्ष होते ..................................................................................( ४ )
निराशा न होती .सु-आशा का सम्बल , न जीवन में किंचिद कभी मूल्य पाता ;
न अस्तित्व होता कि जीवन में सुख को ,न कोई कभी क्लेश दुःख भूल पाता .;
'विषम' और 'सम' का न जोड़ा जो होता, न उत्साह होता ,विफल यत्न होता .
न संघर्ष होते ...................................................................... ............(.५ )
न जो धर्म होता ,प्रभावक कभी भी,प्रयासों से अपने महामानव बनता ;
न दो चार पग भी उसे साथ देते ,कि ' गंतव्य' से दूर हो भीरु, थकता ;
न सक्षम ही होता,सुमानस किसी का, न कर्त्तव्य की भावना -मग्न होता
न संघर्ष होते........................................................ .............................(.६ )
न इंगित जो होता ,सहारा न होता,न चलता कभी भी सफल सृष्टि का क्रम ;
इशारा न होता न अम्बर-अवनि युग्म सहयोग करते ,की रहता क्षितिज-भ्रम ;
सुनिर्मल, सबल ने सँभाला न होता , भले उच्चतम हो , महा निम्न होता .
न संघर्ष होते……………....................................................................(७)
न सौजन्य होता ,न दुर्जन सुधरते , न साफल्य होता, विफल-जन संभलते ;
न व्यक्तित्व होता ,न नर-श्रेष्ठ होते ,अडिग साधना से ,न भ्रम को बदलते ;
न सौन्दर्य होता, न गरिमा ही दिखती ,अशोभा ही होती ,सभी नग्न होता ;
न संघर्ष होते ........................................................................................(८)
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