Saturday, December 26, 2009

बाबू हरगोविंद दयाल श्रीवास्तव 'नश्तर ' की ग़ज़ल


(बाबू हरगोविंद दयाल श्रीवास्तव ' नश्तर ' उत्तर प्रदेश के रायबरेली जनपद में स्थित 'हथगाम ' ग्राम के निवासी थे ,जो जनपद जालौन में बस गए । आप न केवन जनपद जालौन वरन बुन्देलखंड के के ख्यातिप्राप्त वकील ,शायर एवं प्रतिष्ठित समाजसेवी थे । आपकी गिनती हिंदुस्तान के मशहूर शायरों में थी । जालौन जनपद के मुख्यालय उरई में उनके द्वारा प्रतिवर्ष नियमित रूप से आयोजित मुशायरों में अविभाजित हिंदुस्तान के नामचीन शायर शिरकत करते थे । 'नश्तर' साहब की गजलें पाकिस्तान में उर्दू साहित्य में यूनिवर्सिटी स्तर पर पाठ्यक्रम में शामिल की गयीं थीं । महात्मा गाँधी जी स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान जब उरई से गुजरे तो 'नश्तर ' साहब के घर पर ही उन्होंने आथित्य ग्रहण किया था ।' दीवाने नश्तर' एवं 'नश्तर कदा ' के नाम से उनकी रचनाओं का संग्रह भी प्रकाशित है ।' नश्तर' साहब जालौन जनपद ही नहीं देश की साहित्यिक धरोहर हैं। इस ब्लॉग में उनके साहित्य को देश के सुधी पाठकों के समक्ष लाने का प्रयास किया गया है।)

ये धुआं वो धुआं उठा

मेरा कहना मान तू अंदलीब ,
कि
चमन से अपना मकाँ उठा ;
यहाँ रोज का यही रोग है,
कि
ये धुआँ उठा ,वो धुआँ उठा
है यहीं कहीं मेरा आशियाँ ,
जहाँ
शोर है कि धुआँ उठा ;
कोई बढ़ के देख तो ले जरा ,
ये
धुआँ उठा तो कहाँ उठा ?
जहाँ में कोई कमी हुई ,
जहाँ में होगी कमी कोई ;
ये मेरा ख्याल फिजूल था ,
कि
जो मैं उठा तो जहाँ उठा
मेरे सोजे इश्क कि तूने दिल,
को तबाह कर दिया इस तरह ;
शराब थी , शरार था ,
लपट उठी, धुआँ उठा
मुझे दर्दे दिल की शिकायतें ,
हैं
इसी लिये , कि वो ये कहें ;
जब दिल ही पास नहीं तेरे ,
तो
बता ये दर्द कहाँ उठा
तेरी वज्म में थी चला- चली ,
हुआ
हश्र दोनों का एक ही ;
कोई शख्स हँस के चला गया ,
कोई
शख्स नौहाकुनां उठा
कभी नाम तेरी जुबान पर ,
नहीं उसका भूले सेआये बशर;
जो अता हुई है जुबाँ तुझे,
तो जुबाँ से लुत्फे बयाँ उठा
ज़माल नश्तर ज़लवा जू ,
है मुहीत- देहर में
चार सू ;
उसे देखने की है आरज़ू ,
कि
वो हिजाबे-वहमों-गुमाँ उठा
(सौजन्य से - डा उपेन्द्र तिवारी )