Tuesday, March 5, 2013

निस्पृह जी की स्मृति में

 ५ मार्च  जनपद जालौन  के प्रसिद्ध कवि स्व० श्री कृष्ण दयाल सक्सेना 'निस्पृह ' जी का निर्वाण  दिवस है ,जो अपने मूल्यों के प्रति समर्पित एक आदर्श व्यक्तित्व  के रूप में जाने जाते थे। वे हिन्दी ,अंग्रेजी संस्कृत व उर्दू भाषों में काव्य रचना करते थे । प्रस्तुत है उनकी   १९६ ८  में रचित  एक रचना-
 

........................ संघर्ष होते , उपलब्धि होती ...........................

संघर्ष होते ,  उपलब्धि   होती पराजय -विजय फ़िर प्रश्न होता
न आकाश   होते , प्रगतिशील मानव , फ़िर चंद्र पाने की आशा सँजोता ;
विज्ञान अपने प्रयोगों की निधि को , विफल्तांक में इस तरह खोता ;
अमानव होते , अवतार होते, जो कंस आता , फ़िर कृष्ण होता ;
संघर्ष होते..................................................................................( )
भगवान होते, फ़िर भक्त होते, जो साध्य होता साधक ही होते;
जो देवी होती ,उपासक होते, आराध्य होता , आराधक होते;
जो इष्ट होता , फ़िर सिद्धि होती,सफल या विफल फ़िर प्रश्न होता;
संघर्ष होते ................................................................................ ( २)
समस्या होती , हल के लिए भी ,किसी की भी साधना ही न   होती;
संकल्प होता, प्रण -पूर्ति की ही ,किसी को कभी भावना ही होती;
प्रतिष्ठा होती      , व्रत पालने के,    लिए ही कोई नर संलग्न होता ;
संघर्ष होते....................................................................................(३)
सत्कर्म होते         , सत्संग होता     , जो संत होते, होती भलाई ;
फ़िर विश्व के गर्भ से ही कभी भी     ,युगों से पनपती,   खोती बुराई;
सदगुण जो होते, ध्रुव-सत्य होता,नअन्याय का पथ कभी भग्न होता;
 न संघर्ष होते ..................................................................................( ४ )
निराशा न होती .सु-आशा  का सम्बल , न जीवन में किंचिद कभी मूल्य पाता ;
न  अस्तित्व होता कि जीवन में सुख को ,न कोई कभी क्लेश दुःख भूल पाता .;
'विषम' और 'सम' का न  जोड़ा जो  होता, न उत्साह होता ,विफल यत्न होता .
न संघर्ष होते  ...................................................................... ............(.५ )
न जो धर्म होता ,प्रभावक कभी भी,प्रयासों से अपने महामानव बनता ;
न दो चार पग भी उसे साथ देते ,कि  ' गंतव्य' से दूर हो    भीरु, थकता ;
न सक्षम ही होता,सुमानस  किसी का, न कर्त्तव्य की भावना -मग्न होता 
संघर्ष होते........................................................ .............................(.६ )
न इंगित जो  होता ,सहारा न होता,न चलता कभी भी सफल सृष्टि का क्रम ;
इशारा न होता न अम्बर-अवनि युग्म सहयोग करते ,की रहता क्षितिज-भ्रम ;
सुनिर्मल, सबल ने सँभाला न होता , भले    उच्चतम हो ,   महा   निम्न होता .
न संघर्ष होते……………....................................................................(७)
न सौजन्य होता ,न दुर्जन सुधरते , न साफल्य  होता, विफल-जन संभलते ;
न व्यक्तित्व होता ,न नर-श्रेष्ठ होते ,अडिग साधना से ,न भ्रम को बदलते ;
न सौन्दर्य होता, न गरिमा ही दिखती ,अशोभा    ही होती ,सभी नग्न होता ;
न संघर्ष होते ........................................................................................(८)