Wednesday, September 30, 2009
गीतों के राजकुमार 'मंजुल मयंक '
तुम न आये सितारों को नीद आ गयी
रात ढलने लगी, चाँद बुझने लगा ,
तुम न आए, सितारों को नींद आ गयी ।
धूप की पालकी पर ,किरण की दुल्हन,
आ के उतरी ,खिला हर सुमन, हर चमन ,
देखो बजती हैं भौरों की शहनाइयाँ ,
हर गली ,दौड़ कर, न्योत आया पवन,
बस तड़पते रहे ,सेज के ही सुमन,
तुम न आए बहारों को नीद आ गयी। १।
व्यर्थ बहती रही ,आंसुओं की नदी ,
प्राण आए न तुम ,नेह की नाव में,
खोजते-खोजते तुमको लहरें थकीं,
अब तो छाले पड़े,लहर के पाँव में,
करवटें ही बदलती ,नदी रह गयी,
तुम न आए किनारों को नींद आ गयी। २।
रात आई, महावर रचे सांझ की ,
भर रहा माँग ,सिन्दूर सूरज लिये,
दिन हँसा,चूडियाँ लेती अंगडाइयां,
छू के आँचल ,बुझे आँगनों के दिये,
बिन तुम्हारे बुझा, आस का हर दिया,
तुम न आए सहारों को नीद आ गयी । ३।
साहित्य जगत के ऐसे मनीषी को विनम्र श्रद्धांजलि ।
Sunday, September 13, 2009
निस्पृह जी की याद में
........................न संघर्ष होते ,न उपलब्धि होती .
न संघर्ष होते , न उपलब्धि होती पराजय -विजय न फ़िर प्रश्न होता ।
न आकाश होते , प्रगतिशील मानव , न फ़िर चंद्र पाने की आशा सँजोता ;
न विज्ञान अपने प्रयोगों की निधि को , विफल्तांक में इस तरह न खोता ;
अमानव न होते ,न अवतार होते, न जो कंस आता , न फ़िर कृष्ण होता ;
न संघर्ष होते......................................................................। १ ।
न भगवान होते,न फ़िर भक्त होते,न जो साध्य होता न साधक ही होते;
न जो देवी होती ,उपासक न होते,न आराध्य होता ,न आराधक होते;
न जो इष्ट होता ,न फ़िर सिद्धि होती,सफल या विफल न फ़िर प्रश्न होता;
न संघर्ष............................................................ । २।
समस्या न होती ,न हल के लिए भी ,किसी की भी साधना ही न होती;
न संकल्प होता,न प्रण -पूर्ति की ही ,किसी को कभी भावना ही न होती;
प्रतिष्ठा न होती ,न व्रत पालने के, लिए ही कोई नर संलग्न होता ;
न संघर्ष होते.......................................................................।३।
न सत्कर्म होते ,न सत्संग होता,न जो संत होते, न होती भलाई ;
न फ़िर विश्व के गर्भ से ही कभी भी ,युगों से पनपती, न खोती बुराई;
न सदगुण जो होते,न ध्रुव-सत्य होता,नअन्याय का पथ कभी भग्न होता;
न संघर्ष होते........................................................ । ४।
Friday, September 11, 2009
साहित्यिक धरोहर - एक परिचय
साहित्य समाज का दर्पण होता है। साहित्य,कला, संगीत के प्रति अनुराग मनुष्य की स्वाभाविक प्रवृत्ति है जो अवसर पाते ही अभिव्यक्त हो जाती है । देश के प्रत्येक क्षेत्र में ऎसी अनेक प्रतिभाएँ अस्तित्व में हैं जिनकी सृजनात्मक क्षमता अद्वितीय रही है और उनकी रचनाएँ 'कालजयी साहित्य ' की श्रेणी में आती हैं ,लेकिन सार्थक मंच के अभाव में ये रचनायें समाज के सुधी पाठकों के अवलोकनार्थ नहीं आ सकीं। इस ब्लॉग के निर्माण का उददेश्य बुन्देलखंड क्षेत्र के ऐसी रत्नों के साहित्य को प्रकाश में लाना है।
उत्तर प्रदेश का जनपद जालौन ऋषि- भूमि रहा है ।यह क्रोंच,उद्दालक,पाराशर,जाल्वन एवं व्यास जैसे ऋषियों की तपोभूमि रही है। साहित्यिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से यह क्षेत्र अत्यन्त समृद्ध रहा है। इस ब्लॉग के प्रथम चरण में इस क्षेत्र की दिवंगत एवं वर्तमान काव्य प्रतिभाओं की प्रतिनिधि रचनाओं से साहित्यप्रेमियों को अवगत कराने का संकल्प लिया गया है।