आज (30 सिंतबर ) बुन्देलखंड ( हमीरपुर निवासी ) के सुमधुर गीतकार श्री ग़णेश प्रसाद खरे ' मंजुल मयंक' का जन्मदिवस एवम पुण्यतिथि दोनों है.
मयंक जी गरिमापूर्ण व्यक्तित्व से परिपूर्ण एक सीधे,सरल इंसान ,विद्वान शिक्षक एवं हिंदी साहित्य के उदभट विद्वान तथा राष्ट्रीय स्तर के ख्यातिप्राप्त कवि रहे हैं. वे सुप्रसिद्ध कवि श्री गोपाल दास 'नीरज' के साथी रहे हैं.
प्रस्तुत है 'मयंक 'जी का एक बेहद लोकप्रिय गीत-
"रात ढलने लगी चॉद बुझने लगा"
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"रात ढलने लगी , चाँद बुझने लगा,
तुम न आये , सितारों को नींद आ गई ।
धूप की पालकी पर, किरण की दुल्हन,
आ के उतरी, खिला हर सुमन, हर चमन,
देखो बजती हैं , भौरों की शहनाइयाँ,
हर गली, दौड़ कर, न्योत आया पवन,
बस तड़पते रहे, सेज के ही सुमन,
तुम न आये बहारों को नीद आ गई ।
व्यर्थ बहती रही, आँसुओं की नदी,
प्राण आए न तुम, नेह की नाव में,
खोजते-खोजते ,तुमको लहरें थकीं,
अब तो छाले पड़े, लहर के पाँव में,
करवटें ही बदलती, नदी रह गई,
तुम न आये किनारों को नींद आ गई ।
रात आई, महावर रचे साँझ की,
भर रहा माँग, सिन्दूर सूरज लिए,
दिन हँसा, चूडियाँ लेती अँगडाइयाँ,
छू के आँचल, बुझे आँगनों के दिये,
बिन तुम्हारे बुझा, आस का हर दिया,
तुम न आये सहारों को नींद आ गयी ."
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मेरे अग्रज स्व. आदर्श 'प्रहरी ' ने मयंक जी को निम्नांकित पंक्तियों में श्रद्धांजलि दी थी-
"गीत में जो दर्द गाते हैं,
उन्हें मेरा नमन है,
दर्द में जो मुस्कुराते है,
उन्हें मेरा नमन है,
जो व्यथाओं में कथाओं की ,
नई नित सृष्टि करते,
मान्यताओं को बनाते हैं,
उन्हें. मेरा नमन है."
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