याद आती है 22 मई 2002 की वह मनहूस शाम जब मेरे अग्रज एवम् जनपद जालौन के प्रसिद्ध कवि एवम् साहित्यकार सुकवि आदर्श 'प्रहरी' को एकाएक दिल का दौरा पडा और आधे घंटे में ही क्रूर काल ने उन्हें हम से छीन लिया । वे केवल 52 वर्ष के थे। मेरे परिवार के लिये यह वज्रपात ही था ।
आज उनकी सत्रहवी पुण्यतिथि है....उनके साथ बीता बचपन , उनका पढ़ाई में मार्गदर्शन , साथ बैठ कर विभिन्न विषयों पर चर्चा.......उनके साथ कवि गोष्ठियों मे जाना और यह समझना कि जो कवि कवितओं में जितना आदर्श बघारते है व्यवहार में अलग चेहरा रखते हैं .....
उनके विवाह की स्मृतियाँ........मधुमेह से जूझते हुये उनका संघर्ष ......सभी कुछ आज चलचित्र की भाँति नेत्रों के सम्मुख आ रहा है।
आज पारिवारिक समस्यायें काफी कुछ हल हो चुकी है ......परिवार बढ़ गया है....दो दो बहुयें व तीन दामाद परिवार का सदस्य बन चुके है.....भाई साहब की तीनों बेटियाँ अच्छी शिक्षा पाकर अपनी-अपनी ससुराल में सुखपूर्वक जीवन व्यतीत कर रहीं हैं.....बड़ी व मझली बेटियाॅं माँ भी बन चुकी हैं.......नाती,पोते जब भी आते हैं,सारे घर को गुंजित कर देते हैं,....पर उनकी रिक्तता आज भी महसूस होती है।
आज बुन्देलखण्ड के सुप्रसिद्ध कवि ' मंजुल मयंक' के गीत की दो पंक्तियाँ याद आ रही है-
" प्यारे लगते चाँद ,सितारे, अच्छे लगते हैं ये सारे ,
लेकिन लगते सबसे अच्छे,वे तारे जो टूट गये है ।"
सुकवि आदर्श प्रहरी जनपद के काव्य जगत के सशक्त हस्ताक्षर थे।उनके गुरु स्व.डा . राम स्वरुप खरे ने उनकी काव्य प्रतिभा को निखारने में महत्वपूर्ण योगदान दिया था.
वे अपने कवि मित्रों के बीच 'मुक्तक सम्राट ' कहे जाते थे। उनका एक गीत संग्रह ' प्यास लगी तो दर्द पिया है ' प्रकाशित हो चुका है । उनके कुछ अविस्मरणीय मुक्तक प्रस्तुत है-
"बिना तपे तुम कैसे कंचन?
नागपाश बिन कैसे चंदन?
विषपायी जब तक न बनोगे,
तब तक कौन करे अभिनंदन.
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दृष्टिकोणों की बात होती है,
पथ के मोड़ों की बात होती है,
जो भी संघर्ष में विहँसते हैं,
उनकी करोङों में बात होती है. "
और अंत में.... उन्हीं की पंक्तियों से उनको श्रद्धांजलि...
" गीत में जो दर्द गाते हैं , उन्हें मेरा नमन है,
दर्द में जो मुस्कुराते हैं, उन्हें मेरा नमन है,
जो व्यथाओं में ,कथाओं की नई नित सृष्टि करते,
मान्यताओं को बनाते हैं, उन्हें मेरा नमन है."
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