Sunday, August 7, 2011

गोपाल कृष्ण सक्सेना 'पंकज' की ग़ज़ल


बुन्देलखंड के जालौन (उरई )के मूल निवासी एवं मध्य प्रदेश छिदवाडा में अंगेजी साहित्य के प्रोफ़ेसर स्व ० गोपाल कृष्ण सक्सेना 'पंकज ' हिंदी साहित्य का एक चिर परिचित नाम है। मध्य प्रदेश के साहित्यिक परिवेश में उनका बड़ा सम्मान था । उनकी सुमधुर स्वर लहरी कवि सम्मेलनों में एक अनोखा समां बाँध देती थीं. साहित्य जगत उन्होंने हिंदी ग़ज़ल को एक नई पहचान दी है । प्रस्तुत है उनकी एक ग़ज़ल -
हिंदी ग़ज़ल
उर्दू की नर्म शाख पर रुद्राक्ष का फल है ,
सुदर को शिव बना रही हिंदी ग़ज़ल है
इक
शाप ग्रस्त प्यार में खोयी शकुंतला,
दुष्यंत को बुला रही हिंदी ग़ज़ल है ,
ग़ालिब के रंगे शेर में ,खय्याम के घर में,
गंगाजली उठा रही हिंदी ग़ज़ल है
फारस की बेटियां है अजंता की गोद में ,
सहरा में गुल खिला रही हिंदी ग़ज़ल है
आँखों में जाम , बाँहों में फुटपाथ समेटे ,
मिटटी का सर उइहा रही हिंदी ग़ज़ल है
जिस रहगुज़र पर मील के पत्थर नहीं गड़े ,
उन पर नज़र गडा रही ,हिंदी ग़ज़ल है
गिनने लगी है उँगलियों पे दुश्मनों के नाम,
अपनों को आजमा रही हिंदी ग़ज़ल है
सुख-दुःख ,तलाश ,उलझनें ,संघर्ष की पीड़ा ,
सबको गले लगा रही हिंदी ग़ज़ल है
पंकज ने तो सौ बार कहा दूर ही रहना,
होठों पे फिर भी रही हिंदी ग़ज़ल है